Saturday, December 5, 2009


मेरी बात कागज़ के साथ !

देख इन परिंदों को 
मेरा मन  ये करता,
दूर कही गगन में मैं 
हवा से बातें करता,
बहती नदिया के जैसे
मैं भी धरा सा बहता,
मुश्किल आ जाये तो क्या
बस आगे बढ़ता रहता,
सूरज की किरणों सा मैं 
इस अम्बर में आता,
जलता रहता खुद ही मैं 
पर जग रोशन कर जाता,
अजब कहानी है जीवन की
होता जो न सोचा,
दिल की बात मेरे इस दिल की
बस कागज़ को बतलाता...

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